लारा विस्थापितों को ‘अध्ययन नहीं अधिकार’ की जरूरत..। 8 साल पहले जमीन खो चूके विस्थापित आज भी मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे..एनटीपीसी के मेन गेट के सामने आज धरना का 28 दिन पूरा

रायगढ़ /पुसौर। “सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज को” यह मुहावरा एनटीपीसी परिक्षेत्र में बिल्कुल सटीक बैठता है। 8 साल पहले जमीन खो चूके विस्थापित आज भी मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एनटीपीसी के मेन गेट के सामने आज धरना का 28 दिन पूरा हो चुका है, परन्तु एनटीपीसी समस्या का समाधान नहीं करते हुए केवल अध्ययन की बात कर रहा है। गत दिनों एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आंदोलन को गैर वाजिब बताते हुए तथ्यों का अध्ययन करने की बात कही है। जिसको आंदोलनकारियों ने आड़े हाथो लेते हुए कहा कि साहब भोले-भाले किसानों की जमीन लेते समय अगर मूलभूत अधिकारों का अध्ययन कर लिए रहते तो 8 साल बाद अध्ययन करने की जरूरत नहीं होती। अध्ययन करना ही है तो साहब छ.ग. पुनर्वास नीति का अध्ययन करें, जिसमें स्पष्ट रूप से नियमित रोजगार का प्रावधान है। जिसको छिपाकर फर्जी एनटीपीसी आर एंड आर पालिसी लागू कर भू-विस्थापितो को धोखा दिया। अध्ययन करना है तो साहब उन भ्रष्ट एनटीपीसी अधिकारियों का करिए जिन्होंने किसानों की जमीन खरीद कर पुनर्वास के लिए फर्जीवाड़ा किया, जिसके कारण स्थानीय भू-विस्थापित पुनर्वास लाभ से वंचित है। जमीन जाने के 8 साल बाद भी क्यों क्षेत्र के किसान मुआवजा एवं पुनर्वास लाभ एवं जमीन के बदले स्थाई रोजगार जैसे मूलभूत अधिकार से भू-विस्थापित वंचित है।
विदित हो कि सत्र 2018 में 210 दिन का सबसे लंबा आंदोलन हो चुका है। जिससे प्रभावित होकर ‘टाटा इंस्टीट्यूट रिसर्च सेंटर’ ने क्षेत्र में अध्ययन एवम् शोध का कार्य किया है। जिसके रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से पुनर्वास नीति से छेड़छाड़ कर विस्थापितों के मूल अधिकारों को दबाने की बात सामने आयी थी। परन्तु एनटीपीसी ने मनमानी से न केवल भू-विस्थापितो को अधिकार वंचित किया बल्कि अधिकार मांगने पर उन्हें जेल भेजा, यह कहां का वाजिब काम है। आज जब शासन-प्रशासन द्वारा स्पष्ट रूप से नियमित रोजगार एवं पुनर्वास के लिए आदेश दे दिया गया है। अब केवल प्रबंधन को आदेश का पालन करना है फिर भी प्रबंधन द्वारा अध्ययन की बात करना भू-विस्थापितों के साथ अन्याय है। जिसका पूरजोर विरोध आंदोलनकारीयों के प्रदर्शन में दिखाई दे सकता है।